Sanjiv Mehta: जिन्होंने दिया भारतीयों को एक बेहतरीन तोहफा, जानिए कैसे?

 
Sanjiv Mehta: जिन्होंने दिया भारतीयों को एक बेहतरीन तोहफा, जानिए कैसे?

'भारत' एक स्वतंत्र देश जो अपने काम और जिंदादिली के लिए आज पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था, जब यह देश अंग्रेज़ों का गुलाम हुआ करता था. जिसकी सबसे बड़ी वजह ईस्ट इंडिया कंपनी थी.

इसकी शुरूआत समंदर के जरिए माल ब्रिटेन तक लाने के लिए की गई थी. उस समय यह कंपनी भारत से चाय, मसाले और कई चीजों का सौदा किया करती थी. लेकिन देखते ही देखते ईस्ट इंडिया कंपनी ने दुनिया भर के 50 ट्रड खरीद लिये और उन्होंने इतनी दौलत कमाई की कई देशो पर अपनी हुकुमत करने लगे, जिनमे से एक भारत भी था.
लेकिन 1857 मे भारतीय क्रांतिकारियों कि कोशिश सें मेरठ में हुए, आजादी के पहले विद्रोह ने इस कंपनी पर ऐसा असर डाला कि इनका कारोबार रातों-रात आसमान से जमीन पर आ गया. करीब 200 साल तक यह कंपनी भारत पर अपना अधिकार जमाती रही.

लेकिन भारतीयों के दिलो मे आज भी ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए वही रंजीश बरकरार थी. जिसे मिटाने के लिए एक भारतीय बिजनेसमैन ने कदम उठाया.

कौन हैं Sanjiv Mehta?

1961 में मुंबई की एक गुजराती परिवार मे पैदा हुए, संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) आज लंदन में अपनी माइक्रोबायोलॉजिस्ट पत्नी एमी और बेटे अर्जुन व बेटी अनुष्का के साथ रहते है.

WhatsApp Group Join Now

गफूरचंद मेहता (संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) के दादा जी) 1920 के दशक से ही यूरोप में हीरे का कारोबार शुरू कर चुके थे. जिसे उनके बेटे महेंद्र मेहत जी (संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) के पिता) ने फिर पूरा कारोबार फैलाया. लेकिन 1938 में गफूरचंद जी भारत लौट आए थे.

संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) की शिक्षा पहले मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज में हुई और फिर उन्होंने लॉस एंजिल्स में रत्नों की शिक्षा हासिल की. 1983 में अपने पिता के हीरे के कारोबार से जुड़ने के बाद उन्होंने खाड़ी देशों, हांगकांग और अमेरिका में कारोबार फैलाया. साथ ही साथ भारत को घरेलू उत्पाद एक्सपोर्ट करने का बिज़नेस भी बनाए रखा. फार्मा सेक्टर के कारोबारी ससुर जशुभाई शाह की मदद से मेहता ने रूस में भी अपना व्यापार स्थापित किया.

हिंदुस्तान लिवर के उत्पादों को कई देशों में एक्सपोर्ट करने वाले मेहता ने कई क्षेत्रों में एंपायर खड़ा किया. यही नहीं, भारत के महिंद्रा और यूएई के लूलू ग्रुप के साथ ही कई औद्योगिक समूहों के निवेश भी उन्होंने हासिल किए.

कैसे सिर्फ 20 मिनट में खिरीद ली कंपनी

ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से जाने के बाद पूरी तरह से डूब चूकी थी, यहां तक की ब्रिटिश सरकार ने भी मदद करने से बिल्कुल मना कर दिया था. इसिलए 19वी सदी मे यह कंपनी पूरे तरह से बंद हो गयी थी. लेकिन 2003 में चाय और कॉफ़ी के कारोबार के लिए इस कंपनी के शेयरहोल्डरों ने इसे दोबारा चालू करने के कोशिश की.

भारतीय मूल के उद्यमी संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) को जब यह बात पता चली तो उन्होंने उनके आफिस जाने का फैसला किया.

संजीव का कहना है कि, उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के ऑफिस में महज़ 20 मिनट हुए थे, कंपनी के शेयर खरीदने को लेकर उन 20 मिनट के पहले 10 मिनट में ही उन्होंने जान लिया था कि, कंपनी अपने घुटनों पर आ चुकी है. वो इसे बेचने की उम्मीद में ही थे, जैसे ही संजीव को समझ आया कि कंपनी अब बिकने की कगार पर है. उन्होंने सामने से एक नैपकिन उठाया और उसपर एक दाम लिखा, उस दाम को देखते ही कंपनी के मालिकों ने संजीव को 21 शेयर बेचने का फैसला कर लिया. महज़ 20 मिनट में संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) ने कंपनी में एक बड़ा हिस्सा अपने नाम कर लिया.

कहते हैं कि संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) ने वहां जाने से पहले ही सोच लिया था कि वो ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीदकर रहेंगे. ये एक तरह से उनकी तरफ से भारतीयों को एक तोहफा था. जिस कंपनी ने भारत पर राज किया था आज वो उसे ही खरीदने के इरादे से गए थे.

15 मिलियन डॉलर में हुई थी डील

काफी मेहनत मशक्कत से 2005 में बाकी के 38 स्टेक होल्डर से उनके शेयर खरीद कर कंपनी को अपने नाम कर दिया था. यह भारी भरकम डील 15 मिलियन डॉलर में हुई थी. संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) ने इस बारे में कई बार मीडिया से बातचीत करते हुए दोहराया है -

"इतिहास गवाह है कि ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी एक आक्रामकता के नज़रिये से बनी थी. लेकिन वर्तमान कंपनी हमदर्दी को केंद्र में रखती है. जिस कंपनी ने भारत को गुलाम रखा, उसका मालिकाना हक पाना यह वास्तव में ऐसी फीलिंग है, जैसे खोया हुआ साम्राज्य हासिल कर लिया जाए.

संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) अब ईस्ट इंडिया कंपनी को नए बिजनेस में लाएंगे. इस बार ईस्ट इंडिया कंपनी चाय, मसाले और रेशम नहीं बेचेगी बल्कि इसकी जगह वो लक्ज़री चीज़ों में सौदा करेगी. इतना ही नहीं आने वाले समय में ईस्ट इंडिया कंपनी का स्टोर भारत में भी खोला जाएगा और यहाँ पर यह खाने की चीज़ें, फर्नीचर, रियल एस्टेट आदि जैसी चीज़ों में सौदा करेगी. एक बार फिर दुनिया ईस्ट इंडिया कंपनी को देखेगी मगर इस बार एक भारतीय इसका मालिक होगा.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई क्षेत्रों में विस्तार किया और 2020 सितंबर में यह कंपनी इसलिए चर्चा में थी, क्योंकि इसने एक तरह से सिक्कों की टकसाल का परमिट हासिल कर लिया था. जिसमें 1918 में ब्रिटिश इंडिया में आखिरी बार बनाई गई सोने की मुहर के लिए परमिट भी शामिल था.

ये भी पढ़ें: Pnb Fraud Case - ब्रिटेन सरकार ने नीरव मोदी के प्रत्यर्पण को दी मंजूरी

Tags

Share this story