Guruwar vrat katha: विष्णु जी का मिलेगा आशीर्वाद, आज के दिन जरूर करें इस कथा का पाठ

 
Guruwar vrat katha: विष्णु जी का मिलेगा आशीर्वाद, आज के दिन जरूर करें इस कथा का पाठ

Guruwar vrat katha: हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की उपासना का दिन माना गया है. गुरुवार के दिन जो व्यक्ति जगत के पालनहार का पूजन करता है, उसके जीवन में सदा भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है. इसके अलावा गुरुवार के दिन गुरुदेव बृहस्पति की भी आराधना होती है.

ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और गुरुदेव बृहस्पति के व्रत का पालन करता है, उसके जीवन में इन दोनों की ही कृपा बनी रहती है. ऐसे में यदि आप भी आज के दिन व्रत का विधि विधान से पालन करते हैं, तो आपको अवश्य ही गुरुवार के व्रत की कथा पढ़नी चाहिए, अन्यथा आपके व्रत का फल अधूरा रह जाता है. तो चलिए जानते हैं…

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यहां पढ़ें गुरुवार की कथा (Guruwar vrat katha)

एक नगर में एक बार एक दानी राजा रहा करता था. वह हमेशा अपना धन दान पुण्य और जरूरतमंद लोगों की सेवा में लगाता था, लेकिन उसकी पत्नी यानी रानी को उसकी यह बात बिल्कुल भी नहीं पसंद थी. एक बार की बात है जब राजा शिकार पर गया हुआ था, तब एक साधु रानी से भिक्षा मांगने आया. वह साधु कोई और नहीं बल्कि गुरुदेव बृहस्पति थे. रानी ने उस साधु से कहा कि हे साधु महाराज आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा सारा धन और संपत्ति नष्ट हो जाए.

जिस पर साधु महात्मा ने कहा कि तुम ऐसा क्यों चाहती हो? जिस धन और संपत्ति के रख-रखाव से मेरा समय नष्ट हो. मैं ऐसा धन और संपत्ति नहीं चाहती. साधु महाराज ने कहा कि तुम 7 गुरुवार तक मांस-मदिरा का सेवन करो, गुरुवार के दिन अपने बाल धो, घर को गोबर से लीपो, गुरुवार के दिन राजा की हजामत बनवाओ. ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन और संपत्ति नष्ट हो जाएगी.

रानी ने साधु के कहे अनुसार केवल 3 गुरुवार तक लगातार यह काम किया, देखते ही देखते उसकी सारी संपत्ति और धन नष्ट हो गया. ऐसे में जब राजा वापस आया तो उसने रानी से कहा कि यहां तो मुझे कोई कार्य करने नहीं देगा, इसलिए मैं दूसरे नगर जा रहा हूं. ऐसा कहकर वह रानी को छोड़कर दूसरे नगर चला गया. इसके बाद रानी जब खाने के एक-एक दाने के लिए मोहताज हो गई. तब उसने अपनी दासी को अपनी सहेली के पास भेजा कि जाकर उससे थोड़ा अनाज ले आओ.

इस दौरान जब उसकी दासी उसकी सहेली के पास पहुंची, तब वह बृहस्पति देव की आराधना में व्यस्त थी. जिस पर उसने उसकी बात नहीं सुनी और दासी खाली हाथ रानी के पास लौट आई. उसके बाद जब उसकी सहेली की पूजा संपन्न हुई, तब वह अपनी मित्र (रानी) के पास आई, उसने कहा कि गुरुदेव बृहस्पति की कृपा से क्या पता तुम्हारे ही घर में अनाज उपस्थित हो. इतना कहते ही जब रानी ने अपने घर को देखा, तब वहां उसे अनाज की पोटली मिली.

इसके बाद रानी ने अपनी सहेली से बृहस्पति देव को प्रसन्न करने का उपाय पूछा, जिस पर उसकी सहेली ने उसे बताया कि तुम गुरुवार के दिन बृहस्पति देव की आराधना करो और विधि विधान से उनके व्रत का पालन करें. देखते ही देखते रानी ने बृहस्पतिवार के व्रत का विधि-विधान से पालन करना शुरू कर दिया और उसकी सारी संपत्ति उसे वापस मिल गई और फिर उसने दान पुण्य करना आरंभ कर दिया.

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