Shani Jayanti 2022: शनि की कुदृष्टि के कारण ही धड़ से अलग हुआ था गणेश जी का सिर, जानिए क्यों इतनी बुरी है शनिदेव की दृष्टि...
Shani Jayanti 2022: इस साल 30 मई को शनि जयंती मनाई जाएगी. शनि जयंती के दिन शनि देव का जन्म हुआ था. जिसे ही हर वर्ष ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को शनि जयंती के तौर पर मनाया जाता है. शनि जयंती के दिन विशेषकर जो लोग शनि की कुदृष्टि या साढ़े साती का शिकार हैं. कई लोग शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीया जलाते हैं, तो कई लोग शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए काली चीजों का दान करते हैं. कई लोग शनिवार के दिन हनुमान चालीसा पढ़ते हैं. ताकि उनपर शनि देव की बुरी दृष्टि ना पड़ने पाएं.
इसी तरह से शनिदेव की कुदृष्टि से बचने के लिए लोग कई तरह के उपाय करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों शनि देव की नज़र इतनी बुरी है. जोकि जिस व्यक्ति पर भी पड़ती है, उसका अहित हो जाता है. तो इसके बारे में जानने के लिए हमें ब्रह्म पुराण में वर्णित पौराणिक कथा को आधार मानना होगा. तो चलिए जानते हैं…
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क्यों है शनि देव की दृष्टि इतनी बुरी?
मान्यता है कि एक बार जब शनि देव की पत्नी, जोकि राजा चित्ररथ की पुत्री थी. एक दिन रात्रि में जब वह ऋतु स्नान करके शनि देव के समीप पहुंची. तब शनिदेव श्री कृष्ण की भक्ति में लीन थे. जिस कारण उन्होंने अपनी पत्नी पर ध्यान नहीं दिया. जिस पर शनिदेव की पत्नी काफी नाराज हो गई. और उन्होंने उन्हें श्राप दे दिया कि जिस भी व्यक्ति पर शनि देव की दृष्टि पड़ेगी, उसका अहित हो जाएगा.
तभी से कहा जाता है कि कभी भी शनि देव की पूजा करते समय उनकी आंखों में नहीं देखना चाहिए. इसी कारण से शनि देव की मूर्ति भी कभी घर के मंदिर में नहीं लगाई जाती है. इतना ही नहीं, शनि देव की बुरी नजर से बचने के लिए लोग तमाम उपाय भी करते हैं, ताकि शनि की बुरी दृष्टि से बच सकें. क्योंकि शनि देव की कुदृष्टि का शिकार तो महादेव के पुत्र गणेश जी भी हो चुके हैं. तो आम इंसान कैसे उनकी बुरी नजर से बच सकता है.
एक बार जब शनि देव माता पार्वती के पास गए. तब माता पार्वती ने शनि देव से उनके पुत्र गणपति से मिलने को कहा. हालांकि शनि देव जानते थे कि उनकी दृष्टि पड़ते ही गणेश जी का अहित हो जाएगा. लेकिन माता पार्वती इस बात से अनभिज्ञ थी, और उन्होंने गणेश जी को शनि देव के सामने लाकर खड़ा कर दिया. कहते हैं तभी जब शनि देव की दृष्टि गणेश जी पर पड़ी. उसके बाद ही गणेश जी के साथ उनके सर को धड़ से अलग कर दिया था.