Autism vs ADHD: समझें लक्षण और जानें इनमें अंतर

 
Autism vs ADHD: समझें लक्षण और जानें इनमें अंतर

Autism vs ADHD: (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) दोनों ही दिमाग से संबंधित विकार हैं, जो बच्चों में पाए जाते हैं। अधिकतर मामलों में इनके लक्षण माता-पिता को समझ में नहीं आते, जिससे यह बीमारी गंभीर हो जाती है। आइए जानते हैं कि ऑटिज्म और एडीएचडी में क्या अंतर है और इनके लक्षण क्या होते हैं।

ऑटिज्म के लक्षण

ऑटिज्म के लक्षण बच्चे में 1 से 2 साल की उम्र में दिखने लगते हैं। इसमें बच्चा नजरें नहीं मिलाता, बात करने में कठिनाई होती है, और अपनी बातों को बार-बार दोहराता है। बच्चा अपने ही दुनिया में खोया रहता है और अन्य लोगों से संवाद करने में परेशानी होती है। डॉक्टरों के अनुसार, ऑटिज्म का इलाज पूरी तरह संभव नहीं है, लेकिन समय पर इलाज शुरू करने से इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।

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एडीएचडी के लक्षण

एडीएचडी के लक्षण आमतौर पर 4 से 5 साल की उम्र में सामने आते हैं। इसमें बच्चा बहुत अधिक सक्रिय रहता है, किसी काम में ध्यान लगाने में मुश्किल होती है, और अक्सर बिना सोचे-समझे निर्णय लेता है। एडीएचडी का भी कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन बिहेवियर थेरेपी और दवाओं से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

ऑटिज्म और एडीएचडी में अंतर

ऑटिज्म और एडीएचडी दोनों ही मानसिक विकार हैं, लेकिन इनके लक्षण और कारण अलग-अलग होते हैं। ऑटिज्म में बच्चा खुद में सीमित रहता है और सामाजिक संवाद में कठिनाई होती है, जबकि एडीएचडी में बच्चा हाइपरएक्टिव रहता है और किसी भी काम में ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत होती है। दोनों ही बीमारियों का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन सही समय पर थेरेपी और ट्रीटमेंट से बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।

इलाज और देखभाल

इन दोनों बीमारियों के इलाज में मुख्य रूप से बिहेवियर थेरेपी, दवाएं, और बच्चों के व्यवहार में सुधार पर ध्यान दिया जाता है। माता-पिता की भूमिका भी इसमें महत्वपूर्ण होती है। डॉक्टर द्वारा दी गई सलाह के अनुसार बच्चे को थेरेपी दिलाने से उसके व्यवहार में सुधार लाया जा सकता है।

क्या इन बीमारियों को रोका जा सकता है?

एम्स दिल्ली के पीडियाट्रिक विभाग के डॉ. राकेश कुमार बताते हैं कि ऑटिज्म और एडीएचडी के होने का बड़ा कारण जेनेटिक फैक्टर है। गर्भावस्था के दौरान शराब, तंबाकू आदि से बचने से जोखिम कम किया जा सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह रोका नहीं जा सकता। गर्भावस्था के दौरान इन बीमारियों का पता लगाने का कोई टेस्ट नहीं है।
 

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