Lohri 2023: लोहड़ी के दिन ही माता सती ने किया था अग्नि में प्रवेश, जानें इस पर्व को मनाने के अन्य कारण

 
Lohri 2023: लोहड़ी के दिन ही माता सती ने किया था अग्नि में प्रवेश, जानें इस पर्व को मनाने के अन्य कारण

Lohri 2023: हर साल लोहड़ी का त्योहार बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. लोहड़ी का पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में पूर्ण उमंग और उत्साह के साथ अन्य त्योहारों की भांति ही मनाया जाता है.

लोहड़ी के दिन विशेष तौर पर अग्नि देव की आराधना की जाती है. ये पर्व मुख्य तौर पर पंजाबियों और किसानों द्वारा मनाया जाता है, जोकि इस दिन नए साल पर अच्छी फसल होने की कामना करते हैं,

और कई लोग इस दिन को परिवार में नए बच्चे के स्वागत के तौर पर भी मनाते हैं. जहां पश्चिम भारत के लोग लोहड़ी के पर्व को लोहड़ी के तौर पर मनाते हैं,

Lohri 2023: लोहड़ी के दिन ही माता सती ने किया था अग्नि में प्रवेश, जानें इस पर्व को मनाने के अन्य कारण
Image credit:- pixabay

तो वहीं उत्तर भारत में मकर संक्रांति दक्षिण भारत में इसे पोंगल के त्योहार के तौर पर मनाया जाता है. लोहड़ी का त्योहार मुख्य तौर पर पंजाब हरियाणा के पंजाबियों के द्वारा मनाया जाता है,

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जबकि इस त्योहार को किसानों द्वारा भी धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसे में हमारे आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे, क्या के लोहड़ी का त्योहार मनाने के पीछे क्या वजह है, तो चलिए जानते हैं….

लोहड़ी को मनाने के पीछे के कारण

लोहड़ी के के दिन सूर्य देव और अग्नि देवता की उपासना के पीछे का कारण यह है, हर कोई किसान चाहता है कि हर साल उसकी फसल अच्छी हो, जिसके लिए वह लोहड़ी के दिन उनका आभार व्यक्त करता है.

लोहड़ी के दिन माता सती की अग्नि पूजा का विशेष महत्व है, जिसे बेहद शुभ माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान शिव के तिरस्कार के चलते माता सती ने अपने आप को अग्नि में समर्पित कर दिया था.

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Image credit:- thevocalnewshindi

ऐतिहासिक स्रोतों के मुताबिक, लोहड़ी को विजय दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है. पंजाब का नायक कहे गए दुल्ला भट्टी ने आज ही के दिन कई सारी लड़कियों को जिस्मफरोशी के धंधे से बचाया था, तभी से लोहड़ी के दिन गीत गाने की परंपरा है.

लोहड़ी के दिन को किसान नई फसल के आगमन का संकेत मानते हैं, इस कारण लोहड़ी के पर्व को बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दौरान अग्नि में मूंगफली, तिल, रेवड़ी और गुड इत्यादि चीजों को अर्पित किया जाता है.

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लोहड़ी के दिन नई नवेली दुल्हनों के मायकों से उनको वस्त्र और उपहार भेजे जाते हैं, इसकी शुरुआत भगवान शिव और माता सती के समय से हुई थी.
अन्य मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी पर्व का नाम कबीर दास की पत्नी लोई के नाम पर पड़ा है, इसलिए आज के दिन लोई माता की कथा भी सुनाई जाती है.

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