Rahu Temple: देवता नहीं बल्कि इस मंदिर में होती है असुर की पूजा, जानिए क्या है इसका रहस्यमई इतिहास?

 
Rahu Temple: देवता नहीं बल्कि इस मंदिर में होती है असुर की पूजा, जानिए क्या है इसका रहस्यमई इतिहास?

Rahu Temple: सम्पूर्ण भारत में उत्तराखंड ही एक ऐसा स्थान है, जहां महादेव के सबसे अधिक तीर्थ स्थल मौजूद हैं. इसके अलावा उत्तराखंड में हिंदू धर्म के सभी देवी देवताओं का वास है, जिस कारण इसे देवभूमि भी कहा जाता है.

उत्तराखंड में ही भारत के अधिकांश प्राचीन धार्मिक स्थल मौजूद हैं. जिस कारण आरंभ से ये राज्य धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण रहा है.ऐसे में आज हम आपको उत्तराखंड में मौजूद एक ऐसे मन्दिर के बारे में बताने वाले हैं, जहां शिव जी के साथ राहु जी की पूजा की जाती है.

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इस मंदिर की खासियत ये है कि यह संपूर्ण भारत में राहु का इकलौता मंदिर है. इस मंदिर के गर्भ गृह में एक शिवलिंग भी मौजूद है, जहां हर साल लाखों लोग भगवान शिव की पूजा करने पहुंचते हैं.

और राहु दोष से मुक्ति पाने के लिए पूजा अर्चना करते हैं. हालंकि दक्षिण भारत में भी राहु और केतु के मंदिर मौजूद हैं, लेकिन उत्तराखंड के पौड़ी जिले में मौजूद ये इकलौता मंदिर है, जहां राहु के कटे सिर की पूजा होती है. ऐसे में यदि आप इस बार उत्तराखंड जाने की सोच रहे हैं, तो राहु के इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें.

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उत्तराखंड में मौजूद है राहु का मंदिर…

राहु का ये प्रसिद्ध मंदिर उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिले में पैठाणी नामक गांव में स्योलीगाड़ नदी के समीप स्थित है. जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी.

कहा जाता है कि शंकराचार्य को यहां आभास हुआ था कि इस स्थान पर राहु का प्रकोप है. जिसके चलते उन्होंने यहां राहु के मंदिर की स्थापना कराई थी.

साथ ही द्वापर युग में पांडवों ने महाभारत युद्ध के पश्चात राहु दोष से बचने के लिए भगवान शिव और राहु की एक साथ पूजा की थी, तभी से इस मंदिर की विशेष धार्मिक मान्यता है.

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इस मंदिर में शिव जी की अद्भुत प्रतिमा मौजूद है. जबकि इस मंदिर की दीवारों पर राहु के कटे सिर की वास्तुकला का अद्भुत नमूना भी देखने को मिलता है.

मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति की कुंडली में राहु दोष मौजूद होता है, वह अगर यहां आकर राहु के कटे सिर के दर्शन करता है, तो उसकी कुंडली से राहु दोष खत्म हो जाता है.

इस मंदिर में भगवान शिव और राहु के अलावा श्री हरि की सुदर्शन चक्र पकड़े हुए प्रतिमा भी मौजूद है. साथ ही इस मंदिर में गणेश, विष्णु जी के चक्र और चतुर्भुजी चामुंडा आदि की प्रतिमाएं भी मौजूद है. जिनका धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है.

इस तरह जन्मे थे राहु और केतु, और हुई थी राहु के मंदिर की स्थापना…

अमृत मंथन के दौरान जब स्वरभानु नामक राक्षस ने अमृत को छाक लिया था, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया था.

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लेकिन अमृत पान के चलते उसका सिर और धड़ अलग होने के बाद भी अमर हो गए, जिसके सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाता है.

कहते हैं जिस स्थान पर भगवान विष्णु ने स्वरभानु के सिर को धड़ से अलग किया था, उसी स्थान पर आज राहु का ये मंदिर मौजूद है. जहां राहु दोष का निवारण खोजने के लिए लोग दूर दूर से यहां दर्शन के लिए आते हैं.

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