Ramcharitmanas vivad: रामचरितमानस पर एक बार पहले भी उठ चुकी हैं उंगलियां, जानें तब क्या था कारण?

 
Ramcharitmanas vivad: रामचरितमानस पर एक बार पहले भी उठ चुकी हैं उंगलियां, जानें तब क्या था कारण?

Ramcharitmanas vivad: अभी कुछ दिन पहले ही रामचरितमानस की प्रतियों को जलाकर संपूर्ण देश के कई हिस्सों में इसका विरोध किया जा रहा था. रामचरितमानस जो कि हिंदू धर्म का एक बेहद पवित्र ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्री राम और माता सीता के जीवन चरित्र को दर्शाया गया है. इस पवित्र ग्रंथ की रचना महाकवि तुलसीदास जी ने की थी. वर्तमान में इसकी कुछ चौपाइयों को शूद्र और महिला विरोधी मानकर उसका विरोध किया जा रहा है.

ऐसे में हमारे आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे, कि आज से पहले भी रामचरितमानस को लेकर बेहद विवाद उत्पन्न हो चुका है, जिसके बारे में आज हम बात करने वाले हैं. जानते हैं…

Ramcharitmanas vivad: रामचरितमानस पर एक बार पहले भी उठ चुकी हैं उंगलियां, जानें तब क्या था कारण?
Image credit:- thevocalnewshindi

रामचरितमानस और तुलसीदास जी से जुड़ा विवाद

वर्ष 1531 में जब तुलसीदास जी अपनी साहित्यिक कृतियों की रचना कर रहे थे, रामनवमी के समय उन्होंने रामचरितमानस की रचना की. रामचरितमानस के सातों काण्ड सन् 1633 में मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष को लिखकर पूर्ण हो गए थे. इस प्रकार रामचरित मानस को तैयार होने में संपूर्ण 2 साल 7 महीने और 26 दिन का समय लगा था.

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जैसा की आपको विदित है कि रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भगवान श्री राम के सुंदर कार्यों को चौपाइयों के माध्यम से व्यक्त किया है. ऐसे में जब अपनी कृति के संपूर्ण होने के बाद तुलसीदास काशी विश्वनाथ पहुंचे, तो उन्होंने अपनी इस कृति को भगवान विश्वनाथ के चरणों में रख दिया,

Ramcharitmanas vivad: रामचरितमानस पर एक बार पहले भी उठ चुकी हैं उंगलियां, जानें तब क्या था कारण?
Image credit:- unsplash

जब सुबह उठकर देखा था उस कृति पर सत्यम शिवम सुंदरम लिखा हुआ था. उधर जब काशी के ब्राह्मणों को इस बात की जानकारी लगी, उन्होंने तुलसीदास जी की साहित्यिक कृतियों का जलन के मारे काफी विरोध किया. उनका मानना था कि तुलसीदास की कोई भी ग्रंथ इतने पवित्र नहीं है कि उनको पूजा जा सके.

ऐसे में जब ब्राह्मणों ने तुलसीदास जी के सभी साहित्यिक ग्रंथों को जलाने का प्रयास किया, और काशी में रखी रामचरितमानस के ऊपर सबसे पहले वेद, शास्त्र और पुराण रख दिए, लेकिन जब सुबह उन्होंने देखा, तो रामचरित मानस की किताब इन सबसे ऊपर रखी हुई थी,

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जिसके बाद इतनी भूल से सीख लेते हुए सभी ब्राह्मणों ने तुलसीदास जी से क्षमा मांगी और रामायण को हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ के तौर पर माना जाने लगा. तुलसीदास और उनकी कृतियों की प्रशंसा में मधुसूदन सरस्वती जी ने भी कहा है कि,

काशी के वनों में तुलसीदास साक्षात एक तुलसी का पौधा है, जिसकी काव्य रूपी मंजरी पर हमेशा श्री राम नाम का एक भंवरा मंडराता है.

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