Trump Dollar Crisis 2025: ट्रंप की नीतियों से डॉलर की वैश्विक ताकत कमजोर, बढ़ रही है डी-डॉलराइजेशन की रफ्तार

 
Trump Dollar Crisis 2025: ट्रंप की नीतियों से डॉलर की वैश्विक ताकत कमजोर, बढ़ रही है डी-डॉलराइजेशन की रफ्तार

Trump Dollar Crisis 2025: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी बार व्हाइट हाउस में वापसी ने एक बार फिर आर्थिक राष्ट्रवाद, संरक्षणवादी व्यापार नीतियों और वित्तीय प्रयोगों को प्राथमिकता में ला दिया है। इन कदमों से उन्हें राजनीतिक लाभ मिल सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था, विशेष रूप से डॉलर की वैश्विक सर्वोच्चता, पर खतरा मंडरा रहा है।

डॉलर की ताकत अब खुद अमेरिकी नीतियों से ही कमजोर हो रही है

दुनिया भर में अमेरिकी डॉलर न केवल एक मुद्रा है, बल्कि यह वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। दशकों से अमेरिका को "अत्यधिक विशेषाधिकार" (Exorbitant Privilege) मिला हुआ है—जिसकी बदौलत वह कम ब्याज दर पर कर्ज ले सकता है और लगातार व्यापार घाटा चला सकता है।

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लेकिन ट्रंप की आर्थिक नीतियां, विशेष रूप से आक्रामक टैरिफ नीति, इस व्यवस्था की नींव को हिला रही हैं। उन्होंने कनाडा, यूरोप, मैक्सिको और चीन जैसे सहयोगियों और प्रतिद्वंद्वियों पर भारी टैरिफ लगाए हैं, जिससे वैश्विक बाजारों में अस्थिरता और अविश्वास का माहौल बना है।

'Mar-a-Lago Accord' और दबाव की रणनीति

ट्रंप की रणनीति अमेरिकी बाजार के आकार का उपयोग कर अन्य देशों पर दबाव बनाकर कमज़ोर डॉलर और अमेरिकी निर्यातकों के लिए लाभदायक व्यापार शर्तें लाने की है। इस नीति को ट्रंप समर्थक "Mar-a-Lago Accord" कह रहे हैं, जो 1985 के Plaza Accord की तरह दिखने की कोशिश करता है, लेकिन सहयोग की बजाय धमकी पर आधारित है।

इस रणनीति से अमेरिका के पुराने साझेदारों में विश्वास कमजोर हो रहा है और डॉलर की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

डॉलर को हथियार बनाना और उसका जोखिम

ट्रंप अब डॉलर को कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं—यहां तक कि अपने सहयोगियों को भी वित्तीय प्रतिबंध और बैंकिंग प्रतिबंधों की धमकी दी गई है। इससे यूरोपीय देशों में चिंता बढ़ गई है। हाल ही में यूरोज़ोन के सेंट्रल बैंक अधिकारी इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या उन्हें आपात स्थितियों में अमेरिकी फेडरल रिज़र्व पर निर्भर रहना जारी रखना चाहिए।

इस तरह की राजनीति से अमेरिकी डॉलर की निष्पक्ष और स्थिर मुद्रा के रूप में पहचान को नुकसान पहुंच सकता है।

Bitcoin को बढ़ावा और डॉलर की स्थिति पर सवाल

मार्च 2025 में ट्रंप ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया—उन्होंने “डिजिटल गोल्ड रिज़र्व” की घोषणा की, जिसमें Bitcoin को शामिल किया गया है। यह फैसला अमेरिका को क्रिप्टो होल्डिंग्स में अग्रणी बनाता है, लेकिन यह एक विरोधाभासी संकेत भी देता है—अगर डॉलर अजेय है, तो फिर विकल्प की ज़रूरत क्यों?

दूसरे देशों जैसे भूटान, अल सल्वाडोर, चीन और ब्राजील भी Bitcoin जैसे गैर-डॉलर रिज़र्व की ओर झुक रहे हैं। इससे डॉलर की केंद्रीय भूमिका कमजोर हो सकती है।

कमज़ोर डॉलर से फायदा? एक भ्रम

ट्रंप की आर्थिक टीम मानती है कि कमज़ोर डॉलर से निर्यात बढ़ेगा और निर्माण क्षेत्र को गति मिलेगी। लेकिन अर्थशास्त्री डेविड लुबिन का कहना है कि प्रतिस्पर्धा केवल एक्सचेंज रेट से नहीं, बल्कि उत्पादकता, श्रम लागत और आपूर्ति शृंखला पर भी निर्भर करती है।

बाजारों में जबरन डॉलर को कमजोर करने की कोशिश से निवेशकों में डर और मुद्रास्फीति दोनों बढ़ सकते हैं।

वैश्विक वित्तीय सहमति का बिखराव

डॉलर की स्थिति केवल आर्थिक नहीं, बल्कि अमेरिका की संस्थागत साख, कानून का राज और भू-राजनीतिक स्थिरता पर आधारित है। ट्रंप का लेन-देन आधारित दृष्टिकोण उस व्यवस्था को तोड़ सकता है जो दशकों से चली आ रही है।

संभव है कि अमेरिका की ये नीतियां यूरो, सोना, CBDCs (सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी) जैसी अन्य विकल्पों को आगे बढ़ाएं और डॉलर के पतन की नींव रख दें।

डॉलर के तख्त से उतरने की शुरुआत?

 

डॉलर के तख्त से उतरने की शुरुआत?

 

ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति, वित्तीय राष्ट्रवाद और क्रिप्टो प्रयोग आग से खेलने जैसा है। ये कदम घरेलू राजनीति में फायदेमंद हो सकते हैं, लेकिन अमेरिका की वैश्विक मुद्रा स्थिति को कमजोर कर सकते हैं।

अगर यह रुझान जारी रहा, तो इतिहास ट्रंप को उनकी टैरिफ नीतियों या ट्वीट्स के लिए नहीं, बल्कि डॉलर की वैश्विक हैसियत को कमजोर करने के लिए याद करेगा।

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