एक वक्त अफगानिस्तान की तरह चीन में भी दो गुट थे, 50 लाख चीनी सेना मारे गए थें, पढ़िए पूरी स्टोरी

 
एक वक्त अफगानिस्तान की तरह चीन में भी दो गुट थे, 50 लाख चीनी सेना मारे गए थें, पढ़िए पूरी स्टोरी

चीन में भी अफगानिस्तान की तरह दो गुट थे। एक काई शेक जिसको अमेरिका का समर्थन हासिल था और दूसरा माओत्से तुंग का गुट था जो अमेरिका समर्थक काई शेक से लड़ रहा था। दोनों के बीच लड़ाई में काई शेक के 6 लाख सैनिक, माओत्से के 15 लाख सैनिक और 50 लाख आम चीनी नागरिक मारे गये थे।

यानी 4 साल की इस लड़ाई में लगभग 70 लाख लोग मारे गये। मगर आज कुछ लोग कम्युनिस्ट माओत्से तुंग को क्रांतिकारी और तालिबान गुट को आतंकवादी बोलते है। बल्कि माओत्से के नाम पर तो भारत में भी बाजाब्ता राजनीतिक पार्टियां है। जिस तरह से अशरफ गनी चार लैंड क्रूजर में डॉलर भर कर उज्बेकिस्तान या तजाकिस्तान भागा है उसी तरह से काई शेक भी सोना और पैसा लेकर ताईवान भाग गया था।

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एक वक्त अफगानिस्तान की तरह चीन में भी दो गुट थे, 50 लाख चीनी सेना मारे गए थें, पढ़िए पूरी स्टोरी
तालिबान

आज जिस तरह से तालिबान की हुकूमत को कुछ लोग स्वीकारने से इंकार कर रहे है ठीक उस समय भी दुनिया माओ की हुकूमत को स्वीकारने से इंकार कर रहे थे। यूनाइटेड नेशन्स तो सबसे बड़ी विरोधी थी। भारत भी माओ की सरकार को स्वीकारने से इंकार कर दिया था मगर बाद में स्वीकार कर लिया। बल्कि पाकिस्तान से पहले भारत ने ही माओ की सरकार को स्वीकार किया।

देर-सवेर दुनिया के साथ भारत भी तालिबान को स्वीकार कर ही लेगा। माओ जब सरकार में आया तब उसने चीन में मक्खियों एवं चिड़ियों को मारने का हुक्म जारी किया। जिसका नुक़सान यह हुआ कि लगभग 5 वर्षों तक चीन में सुखा पड़ा और भूखमरी फैल गयी।

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बाद में दूसरे देशों से चिड़ियों और मक्खियों को इम्पोर्ट किया गया। इतिहासकार फ्रैंक दिकोत्तर के अनुसार लगभग 4.5 करोड़ लोग इस भूखमरी में मर गये। इतने अमानवीयता के बावजूद आज भी लोग माओ को क्रांतिकारी और तालिबान को आतंकवादी बोलते है। परिभाषा तो धर्म देखकर बदल जाता है।

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