Palestine crisis 2025: अरब देशों की सक्रिय भूमिका के बिना स्थायी समाधान संभव नहीं

 
Palestine crisis 2025: अरब देशों की सक्रिय भूमिका के बिना स्थायी समाधान संभव नहीं

Palestine crisis 2025: इसराइल और हमास के बीच हाल ही में हुए संघर्षविराम के टूटने और फिर से शुरू हुई हिंसा ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि फिलिस्तीन में स्थायी शांति केवल द्विपक्षीय समझौतों से संभव नहीं है। इस जटिल संकट में अरब देशों की भागीदारी को अनदेखा नहीं किया जा सकता। मध्यस्थता से लेकर पुनर्निर्माण और शासन व्यवस्था तक, मिस्र, सऊदी अरब, कतर और जॉर्डन जैसे क्षेत्रीय देशों की भूमिका फिलिस्तीन के भविष्य को तय करने में महत्वपूर्ण है।

मिस्र की भूमिका: मध्यस्थता से पुनर्निर्माण तक

मिस्र लंबे समय से इसराइल और हमास के बीच मध्यस्थता करता आ रहा है। हाल ही में मिस्र, अमेरिका और कतर के प्रयासों से जो संघर्षविराम हुआ था, वह कैदियों की अदला-बदली और मानवीय राहत तक सीमित रहा। लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं बन सका।

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मिस्र ने 53 अरब डॉलर का पुनर्निर्माण प्रस्ताव पेश किया है, जिसे कई अरब देशों और संयुक्त राष्ट्र का समर्थन भी प्राप्त है। इस योजना का उद्देश्य गाज़ा के पुनर्निर्माण और फिलिस्तीनियों को उनके अपने भूमि पर बनाए रखना है, जबकि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की योजना गाज़ा को एक पर्यटन क्षेत्र में बदलने की बात करती थी।

हालांकि, मिस्र की आर्थिक सीमाएं उसे अकेले यह ज़िम्मेदारी उठाने नहीं देतीं। इसलिए उसे अन्य अरब देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सहयोग चाहिए।

अरब लीग की भूमिका सीमित, लेकिन मार्च 2025 का फिलिस्तीन सम्मेलन अहम

अब तक अरब लीग की प्रतिक्रियाएं अधिकतर प्रतीकात्मक रही हैं—इसराइल की आलोचना और दो-राष्ट्र समाधान की अपील। लेकिन मार्च 2025 में आयोजित फिलिस्तीन सम्मेलन एक अहम मोड़ था, जहां सऊदी अरब, जॉर्डन और कतर ने मिलकर एक पुनर्निर्माण और शासन योजना प्रस्तुत की।

इस योजना में

इस योजना में

गाज़ा में तकनीकी रूप से सक्षम फिलिस्तीनी नेतृत्व

संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में शांति बल

स्थानीय सरकार द्वारा सेवाएं प्रदान करने की व्यवस्था शामिल है।

राजनीतिक अड़चनें: हमास की भूमिका सबसे बड़ा सवाल
शांति योजना की सबसे बड़ी चुनौती है गाज़ा पर हमास का नियंत्रण।

मिस्र की योजना हमास को शासन से बाहर करना चाहती है।

इसराइल इस प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज कर चुका है।

हमास के हथियार न छोड़ने और फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) की अविश्वसनीयता ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।

अरब देशों को चाहिए कि वे PA में नई और विश्वसनीय नेतृत्व को लाएं, जो न केवल सेवाएं प्रदान कर सके बल्कि स्थानीय जनता का भरोसा भी जीत सके। इसके लिए मिस्र, जॉर्डन और सऊदी अरब को संयुक्त रूप से प्रशिक्षण और सुरक्षा सहायता देनी होगी।

आर्थिक स्थिरता: समाधान की कुंजी

गाज़ा में स्थायी शांति केवल राजनीतिक समाधान से नहीं आएगी। इसके लिए आर्थिक पुनर्निर्माण भी जरूरी है।

अरब देशों की योजना में औद्योगिक ज़ोन, बंदरगाह, और आधारभूत ढांचे का विकास शामिल है।

लेकिन सुरक्षा गारंटी के अभाव में ग़ल्फ देशों ने अभी तक फंडिंग से दूरी बना रखी है।

इस बीच, चीन की मध्य पूर्व में बढ़ती भूमिका भी इस प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है। चीन ने मिस्र के प्रस्ताव को समर्थन दिया है, जिससे पश्चिमी देशों के बाहर से फंडिंग का एक विकल्प उभरता है। लेकिन चुनौती यह है कि यह फंडिंग हमास को मजबूत न करे।

क्या समाधान संभव है?

इस संकट में पिछली विफलताएं यह बताती हैं कि केवल इसराइल और हमास के बीच बातचीत से हल संभव नहीं है।
जरूरी है कि:

अरब देश मिलकर एकजुट होकर आगे आएं

आर्थिक और राजनीतिक रूप से सहयोग दें

स्थायी और व्यावहारिक योजना को लागू करें

मिस्र का पुनर्निर्माण प्रस्ताव एक मजबूत शुरुआत हो सकता है, लेकिन उसकी सफलता अरब देशों की समन्वित राजनीतिक इच्छा, फंडिंग और सुरक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है।

अरब देशों की एकजुटता ही एकमात्र राह

यह मामला अब केवल फिलिस्तीन की मदद करने तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे मध्य पूर्व में स्थिरता और अरब देशों की भू-राजनीतिक नेतृत्व वापसी से भी जुड़ा है।

अगर अरब देश सक्रिय भूमिका निभाते हैं, तो ही फिलिस्तीन में स्थायी शांति की उम्मीद की जा सकती है।

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