नोएडा बिरयानी केस: 'जानलेवा बीमारी' कानून पर सवाल!

 
Noida Biryani case

नोएडा बिरयानी केस: महामारी कानून पर उठे सवाल

7 अप्रैल को नोएडा के एक रेस्तरां मालिक पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 271 के तहत केस दर्ज किया गया। आरोप? एक ग्राहक को वेजिटेरियन की जगह चिकन बिरयानी डिलीवर करना, जिससे "जानलेवा बीमारी फैलने का खतरा"। यह केस अब कानूनी और सामाजिक बहस का केंद्र बन गया है।

BNS धारा 271 और 272: क्या कहता है कानून?

BNS की धारा 271 "लापरवाही से जानलेवा बीमारी फैलाने" वाले कृत्यों को 6 महीने की जेल से दंडित करती है। धारा 272 उन्हें लक्षित करती है, जो "जानबूझकर" ऐसा करते हैं। दोनों केसों में साबित करना होगा कि आरोपी को पता था कि उसके कार्य से संक्रमण फैल सकता है।

दिल्ली की वकील प्रियंका शर्मा कहती हैं, "यहां तो खाने की गलत ऑर्डर है, न कि कोई महामारी। ऐसे केसों से गंभीर कानूनों की विश्वसनीयता घटती है।"

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महामारी कानूनों का इतिहास

कोविड-19 के दौरान IPC की धारा 269/270 (अब BNS 271/272) का इस्तेमाल लॉकडाउन तोड़ने वालों के खिलाफ हुआ। 2020 में बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर पर यूपी में यही धारा लगी थी, जब उन्होंने COVID पॉजिटिव होने के बावजूद पार्टियां कीं।

हालांकि, अदालतों ने इन धाराओं का दायरा सीमित किया है। शिव कुमार बनाम पंजाब राज्य (2008) केस में मद्रास HC ने कहा कि खाद्य मिलावट के मामले महामारी कानून के बजाय खाद्य सुरक्षा कानूनों के तहत आते हैं।

क्यों अहम है यह केस?

कानूनी विशेषज्ञ डॉ. राजीव मेहता चेतावनी देते हैं: "अगर बिरयानी मिक्स-अप को 'जानलेवा बीमारी' मान लिया गया, तो ये धाराएं किसी भी चीज पर लागू की जा सकती हैं। यह मनमाने कानूनी दुरुपयोग का रास्ता खोल देगा।"

इस केस में अभियोजन को साबित करना होगा:

  1. चिकन बिरयानी से जानलेवा बीमारी फैलने का खतरा था।

  2. रेस्तरां मालिक को इस खतरे के बारे में पता था या होना चाहिए था।

बिना वैज्ञानिक सबूत के, यह केस कानून की व्याख्या पर टिका है।

जनता की प्रतिक्रिया और आगे की कार्रवाई

सोशल मीडिया पर यह केस "#बिरयानीगेट" के मीम्स बन चुका है। ज़ोमैटो और स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म चुप हैं, लेकिन उद्योग जगत को डर है कि इससे डिलीवरी पार्टनर्स पर दबाव बढ़ेगा।

फिलहाल, रेस्तरां मालिक जमानत पर है। विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत में यह केस टिकने की संभावना कम है, लेकिन यह मामला भारत के नए कानूनों में "सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम" की परिभाषा को लेकर सवाल उठाता है।

नोएडा बिरयानी केस कानूनी सख्ती और ज्यादती के बीच की पतली रेखा दिखाता है। BNS की धारा 271/272 का मकसद जनता की सुरक्षा है, लेकिन गलत इस्तेमाल से कानून और सरकार पर भरोसा डगमगा सकता है। अदालत का फैसला भविष्य के ऐसे मामलों के लिए मिसाल बनेगा।

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