क्या बर्बरीक को ही बाबा खाटूश्याम कहा जाता है?
खाटूश्याम बाबा को बर्बरीक का ही रूप माना जाता है. बर्बरीक को महाभारत काल का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहा जाता था. और जब कौरवों पांडवों का युद्ध हुआ तो इन्होंने अहम भूमिका निभाई. और सबसे बड़ी बात यह है कि बर्बरीक ने युद्ध नहीं लड़ा किन्तु फिर भी पांडवों की जीत में उनका विशेष योगदान रहा. कहा जाता है कि कौरवों पांडवो के युद्ध का अंत बर्बरीक सिर्फ 3 बाणों में ही कर सकते थे. कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में बर्बरीक दोनों बिंदुओं के मध्य एक विशालकाय पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और उन्होंने घोषड़ा कर दी कि मैं उसके पक्ष से युद्ध करूंगा. जो कमजोर और युद्ध में हार रहा होगा. यह घोषणा सुनकर भगवान श्री कृष्ण को भी चिंता होने लगी.
क्यों कि श्री कृष्ण उनकी शक्ति से परिचित थे. एक बार की बात है जब भीम के पौत्र बर्बरीक के सामने धनुर्धर अर्जुन और श्री कृष्ण उनकी बहादुरी एवं साहस का परिचय व परीक्षा लेने के लिए उपस्थित हुए. तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पास में ही खड़े एक विशाल वृक्ष के प्रत्येक पत्ते में एक ही बाण से छेद करने को कहा. बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर चलाया. और पलक झपकते ही वृक्ष के सभी पत्ते एक एक कर ज़मीन पर गिर गए. सभी में छेद था. कृष्ण ने कुछ पत्तों को छुपाने की भी कोशिश की. और पत्ते को पैर के नीचे छुपा लिया. ऐसा करते समय तीर कृष्ण के पैरों के पास आ गया. तो बर्बरीक ने कहा पैर हटा लीजिए अभी इस पत्ते में छेद नहीं हुआ है. इसीलिए कुरुक्षेत्र के मैदान में बर्बरीक की वह घोषणा श्री कृष्ण को चिंतित कर गयी.
बाबा खाटूश्याम ही बर्बरीक थे ?
जब बर्बरीक ने प्रतिज्ञा ली कि वह युद्ध में हारने वाले के पक्ष से युद्ध करेंगे. तो कृष्ण ने सोचा हारेंगे तो कौरव ही और अगर अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार बर्बरीक उनकी ओर से लड़ने लगा तो कौरवों को पराजित करना बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसीलिए सुबह सुबह श्री कृष्ण जी ब्राह्मण भेष धारण करके बर्बरीक के शिविर में पहुंचे और दान मांगने लगे. बर्बरीक ने कहा आपको क्या चाहिए, मांगिए. तो ब्राह्मणदेव के रूप में कृष्ण जी ने कहा मैं मांग तो लूंगा किन्तु दे ना पाओगे.
बर्बरीक ने कहा आप मांगकर तो देखिए तो उन्होंने बर्बरीक का शीश मांग लिया. और बर्बरीक ने हंसते हंसते अपने शीश का दान कर दिया. बर्बरीक के इस अद्भुत बलिदान को देखते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में वह कृष्ण के नाम से ही पूजे जाएंगे. और उनका नाम खाटूश्याम होगा. भगवान कृष्ण ने खाटू नामक स्थान पर उनका शीश रखा था.
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