Raksha Bandhan 2022: इन 5 लोगों के कारण मनाया जाता है राखी का त्योहार, जानिए रक्षाबंधन का पौराणिक इतिहास
Raksha Bandhan 2022: हर साल सावन की पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन विशेष तौर पर बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है, जिसके बदले में भाई भी अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है. सालों से रक्षाबंधन का त्योहार इसी तरह से मनाया जा रहा है.
ये भी पढ़े:- रक्षाबंधन से पहले इन 6 राशियों के जीवन में दस्तक देने वाली हैं मां लक्ष्मी, करेंगी धन वर्षा
क्या आप जानते हैं कि भाई बहन के रिश्ते की इस अटूट पर्व की शुरुआत कब से हुई? यदि नहीं तो हमारे आज के इस लेख में हम आपको रक्षाबंधन से जुड़ा पौराणिक इतिहास बताने वाले हैं. इसको जानने के बाद आप भी रक्षाबंधन के इतिहास को अच्छे से जान पाएंगे. तो चलिए जानते हैं…
यहां पढ़िए रक्षाबंधन से जुड़ी पांच पौराणिक कथाएं…
महाभारत काल में कौरवों द्वारा द्रौपदी का चीर हरण किया गया था. उस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी के सम्मान की रक्षा की थी. तभी से द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण को अपने भ्राता के तौर पर स्वीकार किया था. हालांकि एक बार जब श्री कृष्ण के हाथ से खून की धारा बह रही थी, तब द्रौपदी ने अपने साड़ी का एक टुकड़ा फाड़ कर उनके हाथ पैर बांध दिया था. जिसके बदले में भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई थी. तभी से सावन की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है. सभी भाई अपनी बहनों की रक्षा का उन्हें वचन देते हैं.
मुगल काल में जब एक बार राजस्थान की 2 रियासतों में गंभीर लड़ाई चल रही थी. तब मुगलों ने इसका फायदा उठाकर एक रियासत पर हमला बोल दिया. जिस पर दूसरी रियासत के शासक ने दुश्मन रियासत पर हमला करने के लिए मुगलों का साथ देना मुनासिब समझा. लेकिन दुश्मन रियासत में एक पन्ना नाम की रानी थी. जिसने उस रियासत को राखी भेजी, जो कि दूसरी रियासत पर हमला करने के लिए मुगलों का साथ दे रही थी. जिसके बाद दोनों रियासतों ने राखी के वचन को निभाते हुए मुगलों का मिलकर सामना किया. तभी से राखी के त्योहार को परस्पर मैत्री के तौर पर मनाया जाता है.
ऐतिहासिक घटनाओं की ओर नजर डालें तो मध्य भारत में चित्तौड़ की महारानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमायूं को अपना भाई मानते हुए उनके पास राखी भेजी थी. जिसके बदले में हुमायूं ने पति के सम्मान को गुजरात के शासक से बचाया था. तभी से राखी के त्योहार को विशेष मान्यता दी जाती है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार जब देव लोक में देवताओं पर असुरों का हमला हो गया था. तब इंद्रदेव ने गुरु बृहस्पति से परिस्थिति से निकलने का कोई उपाय मांगा था. जिस पर गुरु बृहस्पति के आदेश पर इंद्रदेव ने सावन की पूर्णिमा को मंत्र जाप किया, और गुरु बृहस्पति ने इंद्रदेव की दाहिनी कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांधा. जिसके बाद सारे असुर एक एक करके इंद्रदेव से पराजित हो गए. तभी से हाथ पर रक्षा कवच के तौर पर रक्षा सूत्र बांधा जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब राजा बलि के आग्रह करने पर भगवान विष्णु पाताल लोक छोड़कर हमेशा के लिए राजा बलि के पास आ गए थे. तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथ पर रक्षा सूत्र बांधा था. और बदले में उनसे भगवान विष्णु को उपहार के तौर पर मांग लिया था. तभी से रक्षाबंधन के त्योहार पर उपहार देने की प्रथा चालू हुई है.