महाकाल का श्रृंगार क्यों किया जाता है...

महाकाल के श्रृंगार की हिन्दू धर्म में एक विशेष मान्यता है। वेदों, पुराणों और उपनिषदों में अनेक नामों से शिव की महिमा गाई गई है। भगवान भोलेनाथ को सभी देवी-देवताओं से अलग माना जाता है। उनका स्वभाव उनका भोलापन और उनका रौद्ररूप आदि सभी से भिन्न है। हिन्दू धर्म को सबसे पुराना धर्म माना गया है। हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं का श्रृंगार बहुत ही मनमोहक होता है।
महाकाल का श्रृंगार
महाकाल शिव जी की कल्पना एक ऐसे देव के रूप में की जाती है जो कभी संहारक तो कभी पालक हैं। भगवान भोलेनाथ के रूप के साथ ही उनके रहन सहन का भी तरीका अलग है। हिंदू धर्म की मानें तो सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने लोक हैं। जिनमें वह विराजते है। लेकिन भोलेनाथ ऐसे है जो माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत की सर्द वादियों में विराजते हैं। लेकिन भोलेनाथ एक ऐसे भगवान हैं जिनके शरीर पर हिरण की खाल है और जिन्होंने भस्म धारण किया हुआ है। कंठ में सर्प और सर पे देवी गंगा विराजमान है। भगवान भोलेनाथ के श्रृंगार में सबसे जरूरी है भस्म।
भस्म से जुड़ी कहानी
शिवपुराण के अनुसार जब देवी सती ने देह त्यागा था तब शिव जी ने क्रोध में ताण्डव नृत्य किया था। जिसके बाद भगवान विष्णु ने शिव के क्रोध को शांत करने के लिए उनसे विनती की। क्योंकि देवी सती के वियोग में शिव जी ने औघड़ का रूप बना लिया था। और वह सृष्टि का संहार करने वाले थे। लेकिन विष्णु जी के समझाने के बाद उन्होंने क्रोध में आकर श्मशान में निवास किया और शरीर पर भस्म लगाई थी।
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