Raksha Bandhan 2021: रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें, आख़िर क्या है रक्षाबंधन का इतिहास और रहस्य?
'रक्षा' का अर्थ है सुरक्षा और 'बंधन' का अर्थ है बंधा हुआ. इस प्रकार 'रक्षाबंधन' का अर्थ है 'सुरक्षा का बंधन'. इस दिन बहनें प्यार की निशानी के रूप में अपने भाइयों की कलाई पर एक खास धागा बांधती हैं. इस धागे को 'राखी' कहा जाता है. बदले में भाई अपनी बहनों की आजीवन रक्षा वादा करते हैं. भाई-बहन का रिश्ता सबसे अनोखा होता है. इसमें छोटी मोटी नोक-झोंक से लेकर रूठना-मनाना, एक-दूसरे का साथ देना, एक-दूसरे को सपोर्ट करना, और एक दूसरे के सीक्रेट्स छुपाना, इन सबकी झलक इस रिश्ते में मिलती है. भाई-बहन के इसी अट्टू प्यार को दर्शाता है राखी का त्योहार.
रक्षा बंधन को राखी या सावन के महिने में पड़ने के वजह से श्रावणी व सलोनी भी कहा जाता है. यह श्रावण माह के पूर्णिमा में पड़ने वाला हिंदू तथा जैन धर्म का प्रमुख त्योहार है. लेकिन क्या आपने ये जाना है कि आखिर इस त्योहार का इतिहास क्या है? इस दिन को मनाने की शुरुआत कब हुई थी? अगर नहीं तो आज हम आपको रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ खास बातें बताएंगे.
रक्षा बंधन का इतिहास
इसका इतिहास सदियों पुराना है. राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता. लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि जब एक बार देवताओं और असुरों में युद्ध आरंभ हुआ. युद्ध में हार के परिणाम स्वरूप, देवताओं ने अपना राज-पाठ सब युद्ध में गवा दिया. अपना राज-पाठ पुनः प्राप्त करने की इच्छा से देवराज इंद्र देवगुरु बृहस्पति से मदद की गुहार करने लगे. तत्पश्चात देव गुरु बृहस्पति ने श्रावण मास के पूर्णिमा के प्रातः काल में निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया. इस पुजा से प्राप्त सूत्र को इंद्राणी ने इंद्र के हाथ पर बांध दिया. जिससे युद्ध में इंद्र को विजय प्राप्त हुआ और उन्हें अपना हारा हुआ राज पाठ दुबारा मिल गया. तब से रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा.
यहां भी है जिक्र
रक्षाबंधन के तार रानी कर्णावती से जुड़े हुए भी नजर आते हैं. जब मध्यकालीन युग में मुस्लिमों और राजपूतों के बीच संघर्ष चल रहा था. उस वक्त चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी. इसके बाद ही हुमायूं ने रानी कर्णावती की रक्षा कर, उन्हें अपनी बहन का दर्जा दिया था.
महाभारत में भी हैं ज़िक्र
इतिहास में श्री कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमें जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई. द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी. और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट में द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था. और उसी के चलते कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया. कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई.
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