खिसक रहा है धरती का केंद्र, एशिया के ठीक नीचे होगा खतरा
धरती की सबसे अंदरूनी परत जिसे इनर कोर कहते हैं, वह एक तरफ बढ़ रहा है, जिससे वैज्ञानिक काफी हैरान-परेशान हैं। क्योंकि इससे हमारे जीवन और धरती पर क्या बदलाव होंगे, इसका सही-सही अंदाजा फिलहाल नहीं लगाया जा पा रहा है. हमारे पैरों से करीब 5 हजार किलोमीटर नीचे धरती का इनर कोर है. इसे साल 1936 में खोजा गया था. इससे पहले इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता था।
करीब 100 साल होने को हैं लेकिन अभी तक वैज्ञानिक यह पता नहीं कर पाए हैं कि यह कब और कैसे बना? इसका अध्ययन करने के लिए दुनिया भर के सीस्मोलॉजिस्ट (Seismologists) यानी भूकंप विज्ञानी, मिनरल फिजिसिस्ट (Mineral Physicists) यानी खनिज भौतिकविद और जियोडायनेमिसिस्ट (Geodynamicists) लगे हुए हैं। तीनों मिलकर भूंकपीय गतिविधि, भूकंपीय तरंगों और खनिजों के भौतिक विज्ञान का अध्ययन करके धरती के इनर कोर के व्यवहार को समझने का प्रयास कर रहे हैं।
माना जाता है कि धरती के इनर कोर लोहे का बना है, तीनों तरह के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक नई स्टडी की। इसमें बताया गया है कि धरती का इनर कोर (Earth's Inner Core) बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। लेकिन दिक्कत ये है कि ये एक तरफ फैल रहा है, वैज्ञानिकों को लगता है कि इससे वो इनर कोर की उम्र का पता लगा सकते हैं। साथ ही धरती की चुंबकीय शक्ति का इतिहास भी पता चलेगा, लेकिन इनर कोर के एक तरफ फैलने या विकसित होने से किस तरह की दिक्कत आएगी।
इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा है, यह स्टडी हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित हुई है
धरती के बनने का इतिहास करीब 450 करोड़ साल पुराना है, उसका केंद्र यानी कोर करीब शुरुआती 20 करोड़ साल में बनना शुरु हुआ था। आधुनिक धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति ने भारी लोहे धरती के केंद्र में खींच लिया। इसके बाद पथरीले और सिलिकेट खनिजों को ऊपर छोड़ दिया ताकि मैंटल (Mantle) और क्रस्ट (Crust) का निर्माण हो सके।
धरती के निर्माण के समय काफी ज्यादा गर्मी पैदा हुई जो धरती के अंदर समाहित होती चली गई, लेकिन साथ ही चल रहे रेडियोएक्टिव निष्क्रियता की प्रक्रिया ने इस गर्मी को कम करने का काम भी किया। धीरे-धीरे हमारी धरती ने यह रूप लेना शुरु किया, जैसा कि अभी है। गर्मी कम होने की वजह से धरती के केंद्र से तरल लोहे का आउटर कोर (Liquid Iron Outer Core) बना। इसी की वजह से धरती का चुंबकीय क्षेत्र बना और काम करता है।
जैसे-जैसे धरती ठंडी होती चली गई, टेक्टोनिक प्लेट्स (Tectonic Plates) को ताकत मिली और उनके जुड़ने और टूटने से धरती पर कई महाद्वीपों का निर्माण हुआ। धीरे-धीरे धरती ठंडी होती चली गई, तापमान इतना कम हो गया कि लोहा अपने मेल्टिंग प्वाइंट पर आकर टिक गया और उच्च स्तर का दबाव बर्दाश्त करने लगा। इसके साथ ही इनर कोर का क्रिस्टेलाइजेशन (Crystallisation) शुरू हो गया।
इस समय धरती के इनर कोर (Earth's Inner Core) का रेडियस हर साल 1 मिलीमीटर की दर से बढ़ रहा है, यानी हर सेकेंड 8000 टन पिघला हुआ लोहा ठोस बन रहा है।
भविष्य में करोड़ों साल बाद धरती का इनर कोर (Earth's Inner Core) ठोस लोहे में बदल जाएगा, इसके साथ ही खत्म हो जाएगी धरती की चुंबकीय शक्ति।
चुंबकीय शक्ति खत्म होने के बाद धरती पर क्या होगा
ऐसा माना जा सकता है कि धरती का इनर कोर (Earth's Inner Core) चारों तरफ से ठोस हो रहा है, लेकिन ऐसा है नहीं। 1990 में भूकंप विज्ञानियों ने देखा कि धरती के इनर कोर से टकराने वाली भूकंपीय लहरें या तरंगें एक समान नहीं हैं। इसका मतलब ये है कि धरती के इनर कोर के आकार में कहीं कोई असमानता है, या फिर एक तरफ बदलाव हो रहा है, जिसे आज ये कहा जा रहा है कि यह एक तरफ तेजी से बढ़ रहा है।
धरती के इनर कोर (Earth's Inner Core) के चार हिस्से हैं जो चारों दिशाओं में बांटे गए हैं। इसके पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों के आकार में बदलाव आ रहा है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इनर कोर का पूर्वी हिस्सा एशिया (Asia) और हिंद महासागर (Indian Ocean) के नीचे है। दूसरा यानी पश्चिमी हिस्सा अमेरिका (US), अटलांटिक महासागर और पूर्वी प्रशांत महासागर के नीचे है।
जब वैज्ञानिकों ने इनर कोर के पूर्वी और पश्चिमी छोरों के अध्ययन के लिए नए भूकंपीय आंकड़े जुटाए। उन्हें जियोडायनेमिक मॉडलिंग और उच्च दबाव में लोहे के व्यवहार को मिलाया गया। तब पता चला कि इंडोनेशिया के बांडा सागर (Banda Sea) के ठीक नीचे पूर्वी इनर कोर (Eastern Inner Core) तेजी से बढ़ रहा है। यह ब्राजील के ठीक नीचे मौजूद पश्चिमी इनर कोर (Western Inner Core) की तुलना में ज्यादा फैल रहा है।
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